अतिथि शिक्षकों के संघर्ष पर आधारित
- आचार्य आशीष मिश्रकविता पाठ:
अब न अर्ज़ी, ना दरख़्वास्तें, ना कोई फ़रियाद है,
अतिथि के इस हृदय में, बस धधकता लावा आज है!
खून के आँसू पिए हैं, बरसों से हर घूंट में,
अब उसी लहू से लिक्खी, क्रांति की बुनियाद है!
ये जो कुर्सियाँ हैं ऊँची, और जो बहरे कान हैं,
इस दफ़ा हिल जाएँगे सब, ऐसा ये उन्माद है!
तुमने समझा था हमें बस, कागज़ों का एक पुलिंदा,
देख लो अब चीरकर सीना, कैसा ये फौलाद है!
"स्थायित्व" का हर सपना तुमने, रौंद डाला पाँव से,
अब उसी रौंदी हुई मिट्टी से, उठता ये नाद है!
महापंचायतें थीं धोखा, और वो "समझौते" फरेब,
अब न कोई छल चलेगा, ये अतिथि की ज़िद है, याद है!
हर गली, हर चौराहे पर, अब यही एक शोर होगा,
या तो इंसाफ़ दो हमको, या फिर ये रण घोर होगा!
पेट पर मारी है लाठी, पीठ पर खंजर दिए,
अब तुम्हारे हर सितम का, एक-एक पल गिन लिए!
ये जो लाखों की है संख्या, अब बनी सैलाब है,
रोक सको तो रोक लो अब, वक़्त ये बेताब है!
बच्चों के भविष्य की क़सम, अब न हम झुक पाएँगे,
अन्याय की हर ईंट को, हम तोड़कर दिखलाएँगे!
अब न कोई "नियम" चलेगा, ना कोई "आदेश" तेरा,
जनता की इस अदालत में, होगा फैसला अब मेरा!
ये जो चिंगारी दबी थी, बन गई विकराल आग है,
अतिथि शिक्षक की ये ज्वाला, अब न होगी कभी राख है!
भोपाल से दिल्ली तलक अब, एक ही हुंकार जाएगी,
ये लड़ाई आर या पार की, अब न यूँ ही हार जाएगी!
इंक़लाब की इस मशाल को, अब न कोई बुझा सकेगा,
अतिथि का ये महा-तांडव, इतिहास नया रच देगा!
आंदोलन की एक झलक

(यह एक प्लेसहोल्डर इमेज है, वास्तविक इमेज से बदलें)
संघर्ष की आवाज़ (वीडियो)
(यह एक प्लेसहोल्डर वीडियो है, वास्तविक YouTube VIDEO_ID डालें)
कविता पाठ: स्वर और भाव निर्देशन
१. कविता का मर्म:
यह कविता "अतिथि का महा-तांडव" अतिथि शिक्षकों के वर्षों के दमन, शोषण, और उनके साथ हुए विश्वासघात के प्रति उपजे प्रचंड आक्रोश और एक निर्णायक, विशाल आंदोलन की हुंकार को व्यक्त करती है। इसका प्रत्येक शब्द पीड़ा, संघर्ष, और अब न झुकने के दृढ़ संकल्प से ओतप्रोत है। इसे पढ़ते या गाते समय इन भावों को आत्मसात करना आवश्यक है।
२. गायन/वाचन शैली:
- आवाज में ओज और दृढ़ता: पूरी कविता में आवाज भारी, दृढ़ और ऊर्जावान होनी चाहिए। यह कोई सामान्य कविता पाठ नहीं, बल्कि एक युद्धघोष है।
- प्रारंभिक पंक्तियाँ: "अब न अर्ज़ी, ना दरख़्वास्तें..." को एक गहरी, सधी हुई आवाज में शुरू करें, जैसे तूफान से पहले की शांति, लेकिन जिसमें अंदर का लावा स्पष्ट हो।
- fiery-word वाले शब्द: इन शब्दों पर विशेष जोर दें, उन्हें लगभग थूकते हुए या चिंगारी की तरह उछालते हुए बोलें। आवाज में थोड़ी कड़वाहट और गुस्सा झलकना चाहिए।
- हुंकार की पंक्तियाँ (
.am-hunkar-line
वाली): ये पंक्तियाँ कविता की रीढ़ हैं। इन्हें पढ़ते समय आवाज का स्तर ऊँचा करें, गति थोड़ी तेज हो सकती है, और प्रत्येक शब्द को स्पष्टता और ताकत से बोलें। यह एक सीधी चुनौती या ऐलान होना चाहिए। - भावों का उतार-चढ़ाव: जहाँ पीड़ा का वर्णन हो (जैसे "खून के आँसू पिए हैं"), वहाँ आवाज में दर्द और वेदना का पुट हो। जहाँ आक्रोश हो (जैसे "या तो इंसाफ़ दो हमको, या फिर ये रण घोर होगा!"), वहाँ आवाज में गर्जना हो।
- गति: कविता की गति मध्यम से तेज रखें। यह कोई शोकगीत नहीं, बल्कि एक आंदोलन का गीत है। महत्वपूर्ण पंक्तियों पर हल्का ठहराव देकर प्रभाव बढ़ाया जा सकता है।
- कोरस (यदि समूह में गा रहे हैं): यदि समूह में गाया जा रहा है, तो सभी की आवाजें एक साथ, एक ही लय और ऊर्जा के साथ उठनी चाहिए, जैसे एक संगठित सेना का जयघोष।
- अंतिम पंक्तियाँ: "इंक़लाब की इस मशाल को..." से लेकर अंत तक आवाज में विजय का विश्वास, अटूट संकल्प और एक ऐतिहासिक घोषणा का भाव होना चाहिए। आवाज अपने चरम पर हो।
३. कोड बॉक्स: कविता और निर्देशन
नीचे दिए गए बॉक्स में पूरी कविता और उसके गायन/वाचन के लिए महत्वपूर्ण निर्देश दिए गए हैं। आप इसे आंदोलन के पर्चों, सोशल मीडिया पोस्ट या अन्य सामग्री के लिए कॉपी कर सकते हैं।
कविता: अतिथि का महा-तांडव (रचयिता: आचार्य आशीष मिश्र) [प्रारंभ: गहरी, सधी हुई, लावा उगलती आवाज] अब न अर्ज़ी, ना दरख़्वास्तें, ना कोई फ़रियाद है, [हुंकार की पंक्तियाँ: आवाज ऊँची, दृढ़] अतिथि के इस हृदय में, बस धधकता लावा आज है! [पीड़ा और आक्रोश] खून के आँसू पिए हैं, बरसों से हर घूंट में, [हुंकार की पंक्तियाँ: दृढ़ संकल्प] अब उसी लहू से लिक्खी, क्रांति की बुनियाद है! [चुनौती और उन्माद] ये जो कुर्सियाँ हैं ऊँची, और जो बहरे कान हैं, [हुंकार की पंक्तियाँ: गर्जना] इस दफ़ा हिल जाएँगे सब, ऐसा ये उन्माद है! [व्यंग्य और आत्म-शक्ति] तुमने समझा था हमें बस, कागज़ों का एक पुलिंदा, [हुंकार की पंक्तियाँ: फौलादी आवाज] देख लो अब चीरकर सीना, कैसा ये फौलाद है! [वेदना और संकल्प] "स्थायित्व" का हर सपना तुमने, रौंद डाला पाँव से, [हुंकार की पंक्तियाँ: उद्घोष] अब उसी रौंदी हुई मिट्टी से, उठता ये नाद है! [धोखे का स्मरण, दृढ़ता] महापंचायतें थीं धोखा, और वो "समझौते" फरेब, [हुंकार की पंक्तियाँ: चेतावनी] अब न कोई छल चलेगा, ये अतिथि की ज़िद है, याद है! [आंदोलन का विस्तार और निर्णायक मोड़] हर गली, हर चौराहे पर, अब यही एक शोर होगा, [हुंकार की पंक्तियाँ: युद्धघोष] या तो इंसाफ़ दो हमको, या फिर ये रण घोर होगा! [अन्याय का लेखा-जोखा] पेट पर मारी है लाठी, पीठ पर खंजर दिए, [हुंकार की पंक्तियाँ: हिसाब बराबर करने का भाव] अब तुम्हारे हर सितम का, एक-एक पल गिन लिए! [जनशक्ति का प्रदर्शन] ये जो लाखों की है संख्या, अब बनी सैलाब है, [हुंकार की पंक्तियाँ: अदम्य शक्ति] रोक सको तो रोक लो अब, वक़्त ये बेताब है! [अटूट शपथ] बच्चों के भविष्य की क़सम, अब न हम झुक पाएँगे, [हुंकार की पंक्तियाँ: विध्वंस और निर्माण का संकल्प] अन्याय की हर ईंट को, हम तोड़कर दिखलाएँगे! [व्यवस्था को चुनौती] अब न कोई "नियम" चलेगा, ना कोई "आदेश" तेरा, [हुंकार की पंक्तियाँ: जन-अदालत का फैसला] जनता की इस अदालत में, होगा फैसला अब मेरा! [क्रांति की ज्वाला] ये जो चिंगारी दबी थी, बन गई विकराल आग है, [हुंकार की पंक्तियाँ: अमरता का भाव] अतिथि शिक्षक की ये ज्वाला, अब न होगी कभी राख है! [संघर्ष का राष्ट्रव्यापी प्रभाव] भोपाल से दिल्ली तलक अब, एक ही हुंकार जाएगी, [हुंकार की पंक्तियाँ: निर्णायक लड़ाई] ये लड़ाई आर या पार की, अब न यूँ ही हार जाएगी! [अंतिम विजय उद्घोष: आवाज चरम पर] इंक़लाब की इस मशाल को, अब न कोई बुझा सकेगा, अतिथि का ये महा-तांडव, इतिहास नया रच देगा! --- गायन/वाचन निर्देश --- आवाज: ओजपूर्ण, दृढ़, ऊर्जावान। गति: मध्यम से तेज, महत्वपूर्ण पंक्तियों पर ठहराव। भाव: आक्रोश, पीड़ा, संकल्प, चुनौती, और अंत में विजय का विश्वास। fiery-word वाले शब्द: इन शब्दों पर विशेष जोर, चिंगारी की तरह। हुंकार की पंक्तियाँ (.am-hunkar-line वाली): इन पंक्तियों को युद्धघोष की तरह, ऊँची और ताकतवर आवाज में।
कॉपीराइट एवं उपयोग अधिकार
© सर्वाधिकार सुरक्षित।
यह कविता "अतिथि का महा-तांडव" अतिथि शिक्षकों के न्यायपूर्ण संघर्ष और उनके नियमितीकरण की मांग को समर्पित है। इस कविता का उपयोग अतिथि शिक्षकों से संबंधित आंदोलनों, जागरूकता अभियानों, शैक्षिक कार्यक्रमों, और उनके समर्थन में किसी भी अहिंसक एवं सकारात्मक गतिविधियों के लिए पूर्णतः स्वतंत्र है।
अधिकार पत्र: मैं, आचार्य आशीष मिश्र, अतिथि शिक्षकों को यह अधिकार प्रदान करता हूँ कि वे इस कविता का स्वतंत्र रूप से उपयोग, पाठ, गायन, प्रसारण और प्रचार-प्रसार कर सकते हैं, बशर्ते इसके मूल भाव और रचयिता के नाम "आचार्य आशीष मिश्र" को बनाए रखा जाए। इसका व्यावसायिक उपयोग बिना पूर्व अनुमति के वर्जित है। अतिथि शिक्षकों का संघर्ष हमारा संघर्ष है, और यह रचना उसी भावना को समर्पित है।