अतिथि शिक्षकों का संघर्ष - महाघोष

अतिथि शिक्षक का महा-संग्राम

शोषित अतिथि शिक्षकों के महा-आंदोलन को समर्पित

- आचार्य आशीष मिश्र
ललकार फैलाएं

कविता पाठ:

वो जो झोंक दी जवानी, शिक्षा की ज्वाल में,

शोषण की वेदी चढ़ गए, बिना किसी सवाल के।

श्रम का मोल न पाया, बस घाव सहे उर पर,

हुंकार भरो अब लेखनी, उनकी ज़फ़र की ढाल बन!

ये जो लाखों अतिथि शिक्षक, व्यवस्था के मारे हैं,

घुट-घुट कर जिए हर पल, पर कहाँ वे हारे हैं!

स्थायित्व की माँग थी बस, मुँह से न कुछ बोले थे,

अब सुनो उनकी दहाड़, जो न्याय के द्वारे हैं!

पी लिए आँसू जो खारे, अब वही अंगार बनेंगे,

हक की उनकी गर्जना से, सिंहासन काँपेंगे!

सत्ता के मद में जो भूले, शिक्षक का अपमान किया,

अब उसी अपमान की अग्नि, हर दिशा में व्यापेगी!

अंधे स्वार्थ में डूबे शासक, क्या जानें मन की पीर को,

उनकी पीड़ा के साक्षी हैं, हर कक्षा, हर तख़्ती वो!

हर स्कूल, हर कोना गूँजे, उनके संघर्ष गान से,

अब न सहेंगे मौन रहकर, तोड़ेंगे हर ज़ंजीर को!

सड़कों पर उतरे जो भूखे, झेले लाठी, अपशब्द भी,

नियमितीकरण की एक आशा, दिल में लिए मशाल सी।

सपने रौंदे, उम्मीदें तोड़ीं, पर टूटा न हौसला,

अब उसी हौसले की ज्वाला, जलाएगी हर तिलिस्म को!

वे जो लड़े निरंतर रण में, न्याय की ज्वाला मन में लिए,

कुटिल व्यवस्था को उखाड़ें, बनके वे तूफ़ान हैं!

पेट्रोल बन धधक रहे हैं, क्रांति की इस आग में,

अब न रुकेगा ये कारवाँ, जब तक न मिले सम्मान है!

जब तलक अधिकार न मिलता, ये संग्राम न थमेगा,

इतिहास लिखेगा उनकी गाथा, जो थे अतिथि, पर सिंह थे!

शेर-दिल थे, फौलादी जिगरा, अब न कोई दबेगा,

अतिथि का ये महा-संग्राम, विजय पताका फहरेगा!

आंदोलन की एक झलक

अतिथि शिक्षक आंदोलन

(यह एक प्लेसहोल्डर इमेज है, वास्तविक इमेज से बदलें)

संघर्ष की आवाज़ (वीडियो)

(यह एक प्लेसहोल्डर वीडियो है, वास्तविक YouTube VIDEO_ID डालें)

कविता पाठ एवं निर्देशन

कविता पाठ: स्वर और भाव निर्देशन

१. कविता का मर्म:

यह कविता "अतिथि का महा-संग्राम" अतिथि शिक्षकों के वर्षों के संघर्ष, उनके साथ हुए अन्याय और उनके भविष्य की अनिश्चितता के प्रति उपजे आक्रोश, पीड़ा और अब एक निर्णायक लड़ाई के संकल्प को व्यक्त करती है। इसका प्रत्येक शब्द उनकी वेदना और दृढ़ता का प्रतीक है। इसे पढ़ते या गाते समय इन भावों को गहराई से अनुभव करना महत्वपूर्ण है।

२. गायन/वाचन शैली:

  • आवाज में ओज और संकल्प: पूरी कविता में आवाज में दृढ़ता, ऊर्जा और एक चुनौती का भाव होना चाहिए। यह एक आह्वान है, एक हुंकार है।
  • प्रारंभिक पंक्तियाँ: "वो जो झोंक दी जवानी..." को एक गंभीर, सधे हुए स्वर में शुरू करें, जिसमें बरसों का दबा हुआ दर्द और अब न सहने का संकल्प स्पष्ट हो।
  • fiery-word वाले शब्द: इन शब्दों पर विशेष बल दें, उन्हें स्पष्टता और तीव्रता से उच्चारित करें। आवाज में अंतर्निहित आक्रोश झलकना चाहिए।
  • हुंकार की पंक्तियाँ (.am-hunkar-line वाली): ये पंक्तियाँ कविता की आत्मा हैं। इन्हें पढ़ते समय आवाज का स्तर ऊँचा करें, गति में एक लयबद्ध तीव्रता हो, और प्रत्येक शब्द को एक योद्धा की तरह उद्घोषित करें।
  • भावों का उतार-चढ़ाव: जहाँ पीड़ा और शोषण का वर्णन हो (जैसे "शोषण की वेदी चढ़ गए"), वहाँ आवाज में वेदना का भाव हो। जहाँ आक्रोश और चुनौती हो (जैसे "अब सुनो उनकी दहाड़"), वहाँ आवाज में गर्जना हो।
  • गति: कविता की गति स्थिति के अनुसार मध्यम से तेज रखें। यह एक संघर्ष गाथा है, इसलिए इसमें ऊर्जा और प्रवाह निरंतर बना रहना चाहिए।
  • कोरस (यदि समूह में गा रहे हैं): यदि समूह में गाया जा रहा है, तो सभी की आवाजें एक सुर में, एक ही लय और ऊर्जा के साथ उठनी चाहिए, जैसे एक संगठित जनसमूह की सामूहिक ललकार।
  • अंतिम पंक्तियाँ: "जब तलक अधिकार न मिलता..." से लेकर अंत तक आवाज में विजय के प्रति अटूट विश्वास, अदम्य संकल्प और एक ऐतिहासिक निर्णय का भाव होना चाहिए। आवाज अपने शिखर पर हो।

३. कोड बॉक्स: कविता और निर्देशन

नीचे दिए गए बॉक्स में पूरी कविता और उसके गायन/वाचन के लिए महत्वपूर्ण निर्देश दिए गए हैं। आप इसे आंदोलन के पर्चों, सोशल मीडिया पोस्ट या अन्य सामग्री के लिए कॉपी कर सकते हैं।

कविता: अतिथि का महा-संग्राम
(रचयिता: आचार्य आशीष मिश्र)

[प्रारंभ: गंभीर, सधी हुई, संकल्पित आवाज]
वो जो झोंक दी जवानी, शिक्षा की ज्वाल में,
[हुंकार की पंक्तियाँ: आवाज ऊँची, दृढ़]
शोषण की वेदी चढ़ गए, बिना किसी सवाल के।
[वेदना और दृढ़ता]
श्रम का मोल न पाया, बस घाव सहे उर पर,
[हुंकार की पंक्तियाँ: उद्घोष]
हुंकार भरो अब लेखनी, उनकी ज़फ़र की ढाल बन!

[व्यवस्था पर प्रहार]
ये जो लाखों अतिथि शिक्षक, व्यवस्था के मारे हैं,
[हुंकार की पंक्तियाँ: चुनौती]
घुट-घुट कर जिए हर पल, पर कहाँ वे हारे हैं!
[अन्याय का चित्रण]
स्थायित्व की माँग थी बस, मुँह से न कुछ बोले थे,
[हुंकार की पंक्तियाँ: न्याय की पुकार]
अब सुनो उनकी दहाड़, जो न्याय के द्वारे हैं!

[आक्रोश की अभिव्यक्ति]
पी लिए आँसू जो खारे, अब वही अंगार बनेंगे,
[हुंकार की पंक्तियाँ: चेतावनी]
हक की उनकी गर्जना से, सिंहासन काँपेंगे!
[सत्ता को चुनौती]
सत्ता के मद में जो भूले, शिक्षक का अपमान किया,
[हुंकार की पंक्तियाँ: व्यापक प्रभाव]
अब उसी अपमान की अग्नि, हर दिशा में व्यापेगी!

[पीड़ा का स्मरण]
अंधे स्वार्थ में डूबे शासक, क्या जानें मन की पीर को,
[हुंकार की पंक्तियाँ: सामूहिक साक्षी]
उनकी पीड़ा के साक्षी हैं, हर कक्षा, हर तख़्ती वो!
[संघर्ष का उद्घोष]
हर स्कूल, हर कोना गूँजे, उनके संघर्ष गान से,
[हुंकार की पंक्तियाँ: संकल्प]
अब न सहेंगे मौन रहकर, तोड़ेंगे हर ज़ंजीर को!

[संघर्ष की राह]
सड़कों पर उतरे जो भूखे, झेले लाठी, अपशब्द भी,
[हुंकार की पंक्तियाँ: अदम्य आशा]
नियमितीकरण की एक आशा, दिल में लिए मशाल सी।
[हौसले की उड़ान]
सपने रौंदे, उम्मीदें तोड़ीं, पर टूटा न हौसला,
[हुंकार की पंक्तियाँ: विध्वंसक शक्ति]
अब उसी हौसले की ज्वाला, जलाएगी हर तिलिस्म को!

[निरंतर युद्ध]
वे जो लड़े निरंतर रण में, न्याय की ज्वाला मन में लिए,
[हुंकार की पंक्तियाँ: सामूहिक शक्ति]
कुटिल व्यवस्था को उखाड़ें, बनके वे तूफ़ान हैं!
[क्रांति की अग्नि]
पेट्रोल बन धधक रहे हैं, क्रांति की इस आग में,
[हुंकार की पंक्तियाँ: लक्ष्य प्राप्ति तक]
अब न रुकेगा ये कारवाँ, जब तक न मिले सम्मान है!

[अंतिम विजय का विश्वास]
जब तलक अधिकार न मिलता, ये संग्राम न थमेगा,
[हुंकार की पंक्तियाँ: ऐतिहासिक घोषणा]
इतिहास लिखेगा उनकी गाथा, जो थे अतिथि, पर सिंह थे!
[अदम्य साहस]
शेर-दिल थे, फौलादी जिगरा, अब न कोई दबेगा,
[हुंकार की पंक्तियाँ: विजय उद्घोष, आवाज चरम पर]
अतिथि का ये महा-संग्राम, विजय पताका फहरेगा!

--- गायन/वाचन निर्देश ---

आवाज: ओजपूर्ण, दृढ़, ऊर्जावान, संकल्पित।

गति: मध्यम से तेज, महत्वपूर्ण पंक्तियों पर उचित ठहराव।

भाव: आक्रोश, पीड़ा, संकल्प, चुनौती, और अंत में विजय का अटूट विश्वास।

fiery-word वाले शब्द: इन शब्दों पर विशेष बल, तीव्रता और स्पष्टता के साथ।

हुंकार की पंक्तियाँ (.am-hunkar-line वाली): इन पंक्तियों को युद्धघोष की तरह, ऊँची, लयबद्ध और शक्तिशाली आवाज में।

कॉपीराइट एवं उपयोग अधिकार

© सर्वाधिकार सुरक्षित।

यह कविता "अतिथि का महा-संग्राम" अतिथि शिक्षकों के न्यायपूर्ण संघर्ष, उनके स्थायीकरण और सम्मान की मांग को पूर्णतः समर्पित है। इस कविता का उपयोग अतिथि शिक्षकों से संबंधित सभी प्रकार के आंदोलनों, जागरूकता अभियानों, शैक्षिक संगोष्ठियों, और उनके समर्थन में किसी भी अहिंसक, सकारात्मक एवं रचनात्मक गतिविधियों के लिए पूर्णतः स्वतंत्र है।

अधिकार पत्र: मैं, आचार्य आशीष मिश्र, समस्त अतिथि शिक्षकों एवं उनके शुभचिंतकों को यह अधिकार सहर्ष प्रदान करता हूँ कि वे इस कविता का स्वतंत्र रूप से उपयोग, पाठ, गायन, प्रसारण और प्रचार-प्रसार कर सकते हैं, बशर्ते इसके मूल भाव, उद्देश्य और रचयिता के नाम "आचार्य आशीष मिश्र" को यथोचित सम्मान के साथ बनाए रखा जाए। इस रचना का किसी भी प्रकार का व्यावसायिक उपयोग बिना पूर्व लिखित अनुमति के वर्जित है। अतिथि शिक्षकों का संघर्ष, मानवता का संघर्ष है, और यह रचना उसी अदम्य भावना को समर्पित है। जय शिक्षक, जय संघर्ष!

© आचार्य आशीष मिश्र

Post a Comment

Previous Post Next Post