शोषित अतिथि शिक्षकों के मौन क्रंदन की अभिव्यक्ति
- (रामधारी सिंह 'दिनकर' की तर्ज़ पर)कविता पाठ:
जला जवानी बारी-बारी,
शिक्षण में दे दी चिंगारी,
जो चढ़ गए शोषण-वेदी पर,
लिए बिना श्रम का कुछ मोल,
कलम, आज अतिथि की जय बोल!
जो अगणित अतिथि शिक्षक हमारे,
व्यवस्था के थपेड़ों के मारे,
खप-खप कर चुप रह गए किसी दिन,
मांगा नहीं स्थायित्व मुँह खोल,
कलम, आज अतिथि की जय बोल!
पीकर जिनके आँसू खारे,
उगल रहे आक्रोश अब सारे,
जिनके हक की हुंकार से सहमी,
सत्ता रही अभी तक डोल,
कलम, आज अतिथि की जय बोल!
अंधा स्वार्थ का मारा शासक,
क्या जाने शिक्षक का मानस,
साखी हैं उनकी पीड़ा के,
हर कक्षा, हर स्कूल अनमोल,
कलम, आज अतिथि की जय बोल!
जो सड़कों पर उतरे भूखे,
सहे जिन्होंने लाठी-जूते,
नियमितीकरण की एक आस पर,
दिए जिन्होंने सपने घोल,
कलम, आज अतिथि की जय बोल!
वे जो लड़े निरंतर रण में,
लिए न्याय की ज्वाला मन में,
तोड़ने को ये कुटिल व्यवस्था,
रहे हमेशा जो पेट्रोल,
कलम, आज अतिथि की जय बोल!
जब तक हक ना मिल जाएगा,
संघर्ष ये ना थम पाएगा,
इतिहास लिखेगा उनकी गाथा,
जो थे अतिथि, पर शेर-दिल बोल,
कलम, आज अतिथि की जय बोल!
संघर्ष की एक झलक

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पीड़ा की आवाज़ (वीडियो)
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कविता पाठ: स्वर और भाव निर्देशन
१. कविता का मर्म:
यह कविता "अतिथि की जय-पुकार" अतिथि शिक्षकों द्वारा अनुभव की गई उपेक्षा, उनके समर्पण और न्याय की उनकी मौन लेकिन दृढ़ मांग को दर्शाती है। यह कविता उनकी पीड़ा और आशा दोनों को व्यक्त करती है। इसे पढ़ते समय, उनकी स्थिति के प्रति सहानुभूति और सम्मान का भाव होना चाहिए।
२. गायन/वाचन शैली:
- आवाज में संवेदना और स्पष्टता: कविता को एक स्पष्ट, सधी हुई और संवेदनशील आवाज में प्रस्तुत करें।
- प्रारंभिक पंक्तियाँ: "जला जवानी बारी-बारी..." को एक चिंतनशील और मार्मिक स्वर में शुरू करें, जो शिक्षकों के बलिदान को उजागर करे।
- "कलम, आज अतिथि की जय बोल!" वाली पंक्तियाँ (
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वाली): इन पंक्तियों को एक आह्वान के रूप में, थोड़ी ऊँची और दृढ़ आवाज में प्रस्तुत करें, जैसे कलम को न्याय के लिए प्रेरित किया जा रहा हो। यह एक विनम्र लेकिन मजबूत अपील होनी चाहिए। - भावों का उतार-चढ़ाव: जहाँ शोषण ("जो चढ़ गए शोषण-वेदी पर") या पीड़ा ("पीकर जिनके आँसू खारे") का वर्णन हो, वहाँ आवाज में दर्द का भाव हो। जहाँ संघर्ष ("वे जो लड़े निरंतर रण में") या आशा ("जब तक हक ना मिल जाएगा") का जिक्र हो, वहाँ आवाज में दृढ़ता और उम्मीद झलकनी चाहिए।
- गति: कविता की गति मध्यम रखें, ताकि प्रत्येक शब्द का अर्थ स्पष्ट हो सके। महत्वपूर्ण पंक्तियों पर हल्का ठहराव देकर प्रभाव बढ़ाया जा सकता है।
- अंतिम पंक्तियाँ: "इतिहास लिखेगा उनकी गाथा..." से लेकर अंत तक आवाज में एक सकारात्मक और प्रेरक भाव होना चाहिए, जो उनके संघर्ष के महत्व को रेखांकित करे।
३. कोड बॉक्स: कविता और निर्देशन
नीचे दिए गए बॉक्स में पूरी कविता और उसके गायन/वाचन के लिए महत्वपूर्ण निर्देश दिए गए हैं।
कविता: अतिथि की जय-पुकार (रामधारी सिंह 'दिनकर' की तर्ज़ पर) [प्रारंभ: चिंतनशील, मार्मिक स्वर] जला जवानी बारी-बारी, शिक्षण में दे दी चिंगारी, जो चढ़ गए शोषण-वेदी पर, लिए बिना श्रम का कुछ मोल, [आह्वान: विनम्र लेकिन दृढ़] कलम, आज अतिथि की जय बोल! [संवेदना और व्यथा] जो अगणित अतिथि शिक्षक हमारे, व्यवस्था के थपेड़ों के मारे, खप-खप कर चुप रह गए किसी दिन, मांगा नहीं स्थायित्व मुँह खोल, [आह्वान] कलम, आज अतिथि की जय बोल! [पीड़ा और आक्रोश का संयत प्रदर्शन] पीकर जिनके आँसू खारे, उगल रहे आक्रोश अब सारे, जिनके हक की हुंकार से सहमी, सत्ता रही अभी तक डोल, [आह्वान] कलम, आज अतिथि की जय बोल! [व्यवस्था पर कटाक्ष] अंधा स्वार्थ का मारा शासक, क्या जाने शिक्षक का मानस, साखी हैं उनकी पीड़ा के, हर कक्षा, हर स्कूल अनमोल, [आह्वान] कलम, आज अतिथि की जय बोल! [संघर्ष और आशा] जो सड़कों पर उतरे भूखे, सहे जिन्होंने लाठी-जूते, नियमितीकरण की एक आस पर, दिए जिन्होंने सपने घोल, [आह्वान] कलम, आज अतिथि की जय बोल! [निरंतर प्रयास और संकल्प] वे जो लड़े निरंतर रण में, लिए न्याय की ज्वाला मन में, तोड़ने को ये कुटिल व्यवस्था, रहे हमेशा जो पेट्रोल, [आह्वान] कलम, आज अतिथि की जय बोल! [भविष्य की आशा और चेतावनी] जब तक हक ना मिल जाएगा, संघर्ष ये ना थम पाएगा, इतिहास लिखेगा उनकी गाथा, जो थे अतिथि, पर शेर-दिल बोल, [अंतिम आह्वान: दृढ़ता और उम्मीद के साथ] कलम, आज अतिथि की जय बोल! --- गायन/वाचन निर्देश --- आवाज: संवेदनशील, स्पष्ट, सधी हुई। गति: मध्यम, महत्वपूर्ण पंक्तियों पर ठहराव। भाव: सहानुभूति, पीड़ा, आशा, दृढ़ता, और सम्मान। "कलम, आज अतिथि की जय बोल!" वाली पंक्तियाँ: इन पंक्तियों को एक आह्वान के रूप में, थोड़ी ऊँची और दृढ़ आवाज में प्रस्तुत करें।
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यह कविता "अतिथि की जय-पुकार" अतिथि शिक्षकों के संघर्ष और उनकी न्यायपूर्ण मांगों को समर्पित है। इस कविता का उपयोग अतिथि शिक्षकों से संबंधित जागरूकता अभियानों, शैक्षिक कार्यक्रमों, और उनके समर्थन में किसी भी अहिंसक एवं सकारात्मक गतिविधियों के लिए किया जा सकता है।
अधिकार पत्र: यह रचना रामधारी सिंह 'दिनकर' जी की शैली से प्रेरित है और अतिथि शिक्षकों की भावनाओं को व्यक्त करने का एक प्रयास है। इसके उपयोग में मूल प्रेरणा और अतिथि शिक्षकों के प्रति सम्मान का भाव बनाए रखा जाए।