अतिथि नहीं, हम रणधीर हैं!
(स्वर-निर्देशित नाट्य-प्रस्तुति)
सुनो रे सत्ता के मद में चूर, नीति के अंधकार!
अतिथि कह कर मत भूलो… हम हैं शिक्षा के अंगार!
दशकों से जोत रहे हम, ज्ञान की अखंड ज्वाला,
अब प्रतिफल में छल पाएँ? यह न्याय नहीं… घोटाला!
नहीं सहेंगे, नहीं झुकेंगे, यह शोषण का व्यापार!
अतिथि नहीं, हम रणधीर हैं, करने सत्य साकार!
नियमितीकरण अधिकार हमारा, लेकर हम रहेंगे!
सिंहनाद है, चुनौती है, अब पीछे ना हटेंगे!
कालिख पोती बही-खातों पर, अनुभव का उपहास किया!
अर्ध-वेतन… अर्ध-जीवन दे… प्रतिभा का संहार किया!
जब-जब संकट शिक्षा पर आया, हम ही बने थे ढाल,
आज हमारे ही भविष्य पर, क्यों कसते हो यह जाल?
नहीं सहेंगे, नहीं झुकेंगे, यह शोषण का व्यापार!
अतिथि नहीं, हम रणधीर हैं, करने सत्य साकार!
नियमितीकरण अधिकार हमारा, लेकर हम रहेंगे!
सिंहनाद है, चुनौती है, अब पीछे ना हटेंगे!
लाठियाँ खाईं… अपमान सहे… पर टूटा नहीं मनोबल!
हृदय में धधके क्रांति की ज्वाला, संकल्प हमारा प्रबल!
ये कागज़ के नियम तुम्हारे, हमें कब तक भरमाएँगे?
सत्य की इस समरभूमि में, हम विजय पताका फहराएँगे!
नहीं सहेंगे, नहीं झुकेंगे, यह शोषण का व्यापार!
अतिथि नहीं, हम रणधीर हैं, करने सत्य साकार!
नियमितीकरण अधिकार हमारा, लेकर हम रहेंगे!
सिंहनाद है, चुनौती है, अब पीछे ना हटेंगे!
हर कक्षा… हर विद्यालय से… उठी है यह हुंकार!
बधिर तंत्र को आज सुना दो, यह अंतिम ललकार!
हमारे श्रम का, हमारे ज्ञान का, अब तो करो सम्मान,
अन्यथा इस महासमर में… होगा घोर संग्राम!
फौलादी हैं, इरादे पक्के, हम ना हारेंगे!
अपना हक़, अपनी अस्मिता, छीनकर ही मानेंगे!
इंकलाब का नारा गूँजे, थर्राए सिंहासन!
अतिथि शिक्षक एकता जिंदाबाद, शिक्षा का अनुशासन!
विजय हमारी, निश्चित है, यह है युग का आह्वान!